अन्ना एक और आन्दोलन पर जा रहे है . निकट भविष्य में लोकपाल पर कोई निर्णय आना मुश्किल लगता है .आम जनता को लग रहा है अन्ना के साथ कंही न कही वे भी छले गए है .हमारे प्रतिनिधियों की बात से ज्यादा इस बात पर विश्वास होता है की वे ऐसा कोई कानून नहीं बनायेंगे जिससे उनकी सुविधा का अंत हो . हम कैसे युग में जी रहे है जंहा सार्वजानिक जीवन में शुचिता व् नैतिकता की बात अब बेमानी होगई है .कुछ को छोड़ दे तो भ्रष्टाचार पक्ष में अब कम लोग नजर आरहे है, जितने की इसके विरोध में . भ्रष्टाचार के विरोध सम्पूर्ण देश खड़ा है . पर उनको नजर नहीं आरहा जिनको इसे देखना है .ऐसी क्या मज़बूरी है ? क्या पहेली है ? सामने चुनाव है समय एक कड़े निर्णय का है . रुके रुके से कदम क्यों है कोई तो पहेली बुझाये .
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